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सड़क बिना कैसा विकास, प्रदेश में लंबे समय से पूरा नहीं हो पाया इन सड़कों का निर्माण।

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प्रतीकात्मक तस्वीर

किसी भी राज्य की सड़कें उस राज्य की नसों के समान हैं। राज्य में सड़कें सेवाएं जितनी बेहतर होगी, राज्य में कनेक्टविटी भी उतनी बेहतर होंगी। उत्तराखंड सरकार भी पहाड़वासियों की राह आसान बनाने की तैयारी में जुटी है। जिसके लिए रोड नेटवर्क को मजबूत करने के लिए कई प्रोजेक्ट्स पर काम जारी है, सीमांत क्षेत्रों में सड़क सेवाओं को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, और इन सड़कों के निर्माण के लिए केन्द्र सरकार की मदद भी मिल रही है। लेकिन उत्तराखण्ड में इन सड़कों के निर्माण कार्यों में अधिकारियों द्वारा की जा रही लापरवाही उत्तराखण्ड़ वासियों के जीवन पर भारी पड़ रही है।

विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग-74 और राष्ट्रीय राजमार्ग-87 के निर्माण का निर्माण पूरा नहीं हो सका है। इन सड़कों के निर्माण कार्य में हुई देरी जनपद स्तर पर विभागों के बीच समन्वय की कमी माना जा रहा है। शासन ने आयुक्त नैनीताल को पत्र लिखकर राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए संबंधित विभागों के साथ बैठक बुलाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही लंबित प्रकरणों का निस्तारण करते हुए इसकी सूचना शासन को उपलब्ध कराने को कहा है।

सचिव लोक निर्माण विभाग आरके सुधांशु ने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण द्वारा प्रदेश में किए जा रहे, सड़क निर्माण के कार्यो की समीक्षा करते हुए कहा था कि एनएचएआइ के कार्य वर्षो पूर्व स्वीकृत किए जा चुके हैं। लेकिन अभी तक इनका निर्माण न होना चिंताजनक है। इस दौरान उन्होंने हरिद्वार से काशीपुर, रुद्रपुर व सितारजंग होकर बरेली जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-74 के निर्माण कार्यो में आ रही दिक्कतों के संबंध में जानकारी ली। बताया गया कि जमीन हस्तांतरण और बिजली के पोल शिफ्ट करने के कार्य लंबित चल रहे हैं। दिल्ली से नैनीताल, रानीखेत, कौसानी से होते हुए अल्मोड़ा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-109 के संबंध में की गई समीक्षा के दौरान बताया गया कि वन भूमि हस्तातरण, वृक्षों की कटाई और भूमि अधिग्रहण के प्रकरण लंबित हैं।

वन भूमि हस्तांतरण न होने के कारण प्रदेश के हाथ से 72 सड़कें फिसलने का खतरा मंडरा रहा है। ये सड़कें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्रों में बनाई जा रही हैं, इन सड़कों में सबसे बड़ी बाधा वन भूमि हस्तांतरण है और केन्द्र सरकार इस मामले पर स्पष्ट कर चुकी है कि यदि दिसंबर तक वन भूमि हस्तांतरण नहीं न हुआ तो इन सड़कों पर पुनर्विचार करना होगा। केन्द्र सरकार हर वर्ष नागरिकों के बुनियादी सुविधाएं मुहैय्या कराने एवं सार्वजनिक ढ़ांचे को मजबूत करने के लिए भारी मात्रा में संसाधन जुटाती रही है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही व राजनीतिक प्रभाव कहीं न कहीं इन कार्यों पर असर डालता है।

उत्तराखण्ड की बात की जाए तो यहां नौकरशाही की मनमानी पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। प्रदेश में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो, नौकरशाही पर कोई भी सरकार लगाम नहीं कस पाई है। अधिकारियों की सुस्ती के काऱण आज प्रदेश के हाथ से 72 सड़कें छीनने का खतरा मंडरा रहा है, तो वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में देरी हो रही है। खुद विभागीय सचिव कार्यों में हो रही देरी का कारण जनपद स्तर के अधिकारियों में समन्वय न होना स्वीकार चुके हैं। साथ ही वर्षों से इन मामलों के निस्तारण न होने पर नाराजगी जता चुके हैं। अब सरकार को ही इन निर्माण कार्यों में सामने आ रही दिक्कतों को दूर करने की पहल करनी होगी और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करनी होगी।