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लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाएं हुई बेपटरी, नौनिहालों को भी नहीं लग पाए टीके।

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कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए देश में मार्च से लॉकडाउन घोषित किया गया था। लॉकडाउन से कोरोना संक्रमण की रफ्तार रोकने में कितनी सफलता मिली ये तो अभी स्पष्ट नहीं हो पाया लेकिन इस दौरान नौनिहालों को टीके से जरूर वंचित रहना पड़ा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान प्रभावित स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जानकारी दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच देश के अस्पतालों में 24 फीसदी कम डिलीवरी हुई है।

मंत्रालय ने लोकसभा में भी इन आंकडों को पेश किया है। लॉकडाउन से नवजात शिशुओं को समय पर टीका भी नहीं लग पाया है। देश में 19.4 फीसदी शिशुओं को जन्म के बाद हैपेटाइटिस बी का टीका भी नहीं लग पाया। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष टीकाकरण कार्यक्रम में भी 31 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, अब तक के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब देश में टीकाकरण अभियान इस कदर प्रभावित हुआ हो।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना वायरस को लेकर 24 मार्च से लॉकडाउन होने के बाद अस्पतालों में ओपीडी इत्यादि पर काफी असर देखने को मिला। चूंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है इसलिए केन्द्र ने दिल्ली एम्स व अपने अस्पतालों की जानकारी देते हुए कहा है कि आमतौर पर दिल्ली एम्स में एक माह में करीब 3 लाख मरीजों का ओपीडी एवं आईपीडी (भर्ती) दोनों को मिलाकर उपचार होता था लेकिन 24 मार्च से लेकर अब तक 4 लाख 1 हजार पांच सौ छह मरीजों को ही उपचार मिल पाया। ठीक इसी तरह सफदरजंग अस्पताल में 253220 आरएमएल में 2684714, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में 211796, एम्स भुवनेश्वर में 94999, जोधपुर एम्स में 1276317, रायपुर एम्स में 126486, ऋषिकेश एम्स में 48765, एम्स पटना में 15491 और भोपाल एम्स में 62862 मरीजों को उपचार मिल सका। लॉक डाउन की वजह से कैंसर और टीवी के रोगियों में भी अप्रैल माई 8 जून में सेवाओं में क्रमशः 28 और 56% की गिरावट दर्ज की गई है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक महामारी की शुरुआत में लोक डाउन की घोषणा होने के कुछ समय तक स्वास्थ्य सेवाओं पर काफी बुरा असर पड़ा था लेकिन लगातार राज्यों के साथ बैठक में और जिला स्तर पर निगरानी बढ़ाए जाने से जल्द ही सुधार भी देखने को मिला। अधिकारियों के मुताबिक स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली का हवाला देकर लॉक डाउन के दौरान की स्थिति बताई जा रही थी लेकिन सभी तरह के आंकड़ों की समीक्षा के बाद यह स्पष्ट हुआ है कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत इस साल मार्च से अगस्त के बीच 1096048 माताओं की जांच की गई है। लॉकडाउन के दौरान अस्पतालों में होने वाली प्रसूतियों में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसके अलावा 31 फीसद टीकाकरण और 19.4 फ़ीसदी हेपेटाइटिस बीकेटी के में कमी देखने को मिली है इसके अलावा पोलियो और बीसीजी टीकाकरण में 30 से 40 फीसदी तक की कमी दर्ज की गई है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि अप्रैल में केंद्र की ओर से राज्यों को पत्र लिखते हुए पोलियो व अन्य सभी तरह के टीकाकरण पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए गए थे। बावजूद इसके राज्यों की ओर से सुस्त रवैया अपनाया गया इसके चलते पोलियो अभियान का दूसरा चरण ज्यादातर राज्यों में पूरा नहीं हो सका।