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विधानसभा चुनावों में नहीं चल रहा मोदी मैजिक।

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विधानसभा चुनावों में अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू मानो कहीं खो सा गया है।झारखंड विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद तो कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। झारखंड में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और सभी प्रमुख भाजपा नेताओं की रैलियां आयोजित कीं। अंतिम दो चरणों में प्रधानमंत्री ने जमकर प्रचार किया और अपने नाम पर वोट मांगे, फिर भी पिछली बार के मुकाबले पार्टी 12 सीटें कम जीती और बहुमत से दूर रह गई। झारखंड वह राज्य है जहां अभी 6 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में उसे 14 में से 12 सीटों पर विजय मिली थी। अधिकतर लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों को 40 से 50 प्रतिशत तक वोट मिले। फिर भी इस विधानसभा चुनाव में उसके प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों ही जीत से वंचित रह गए।
लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र के बाद झारखंड की सत्ता भी गंवा दी है। हरियाणा में किसी प्रकार सत्ता बचाने में कामयाब रही भाजपा को बीते एक साल में 5 राज्यों (इससे पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान) की सत्ता गंवानी पड़ी है। पार्टी राज्यों में हार का मिथक तोडने में कामयाब नहीं हो पा रही। वह भी तब जब पार्टी और मोदी सरकार एक के बाद एक राष्ट्रवादी एजेंडे को अमली जामा पहना रही है। जाहिर है कि झारखंड के निराशाजनक नतीजे के बाद भाजपा में चिंता है।
वहीं दिलचस्प तथ्य यह भी है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हारी, उन्हीं राज्यों में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। इसके बाद जिन दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में पार्टी हारी और हरियाणा में किसी तरह सत्ता बचाने में कामयाब रही, उन राज्यों में पार्टी लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के आसपास भी नहीं पहुंच पाई। वर्तमान झारखंड का ही उदाहरण लें तो पार्टी का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनाव के मुकाबले करीब 17 फीसदी लुढ़क गया।
झारखंड के चुनाव परिणाम ने भाजपा नेतृत्व को सकते में डाल दिया है। पार्टी को उस समय करारी हार मिली है, जब नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी पर देश की सियासत गरम है। पार्टी इस मोर्चे पर बेहद आक्रामक भूमिका निभा रही है। इसके अलावा चुनाव ऐसे समय में हुए जब राम मंदिर पर पक्ष में परिणाम आया। अनुच्छेद 370 को निरश्त कर पार्टी और सरकार ने देश को बड़ा संदेश दिया। पार्टी के लिए मुश्किल यह है कि अब उसके सामने पहले दिल्ली, बिहार और उसके बाद पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव है। इन तीनों ही राज्यों में पार्टी के पास कोई करिश्माई चेहरा नहीं है।